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जानिए, हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़े नियम!

हिन्दू धर्म में महिलाओं का श्मशान घाट जाना वर्जित क्यों है? शमशान से आकर नहाना क्यों जरूरी है ?

हिन्दू धर्म में शव को श्मशान भूमि में जाकर अग्नि को समर्पित करने का विधान है | हिन्दू धर्म में शवयात्रा में भाग लेना या शव को कंधा देना, दोनों को ही पुण्य कर्मों में रखा गया है। लेकिन एक बात और है जिसके अंतर्गत श्मशान में शव दाह के बाद घर आकर नहाना शामिल है। कभी आपने सोचा है क्यों शमशान से आने के बाद स्नान करना जरुरी बताया गया है। आखिर दाह संस्कार के बाद नहाना क्यों आवश्यक है ? हिन्दू धर्म में महिलाओं का श्मशान घाट जाना वर्जित क्यों है?

कहते हैं कि जब इंसान का जन्म होता है तो उसके साथ ही उसकी मृत्यु की तारीख भी निश्चित हो जाती है। ऐसे ही हमारे हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मौत तक के 16 संस्कार किए जाते हैं। आज हम बात करेंगे उन्हीं में से एक अंतिम संस्कार यानि दाह संस्कार के बारे में। शास्त्रों में अंतिम संस्कार से जुड़े नियमों का उल्लेख देखने को मिलता है  ऐसा ही एक नियम है कि अंतिम संस्कार के बाद स्नान बहुत जरूरी है। आईये आज इसके बारे में जानते हैं।

हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार के बाद नहाना क्यों जरुरी है?

धर्म शास्त्रों का कहना है कि शवयात्रा में शामिल होने और अंतिम संस्कार के मौके पर उपस्थित रहने से, इंसान को कुछ देर के लिए ही सही लेकिन जिंदगी की सच्चाई की आभास होता है। जब श्मशान जाने के आध्यात्मिक लाभ हैं, तो वहां से आकर तुरंत नहाने की जरूरत क्या है। ये सवाल अधिकतर लोगों के मन में आता है। आइए जानते हैं इस परंपरा के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण को…

अंतिम संस्कार और धार्मिक कारण

श्मशान भूमि पर लगातार ऐसा ही कार्य होते रहने से एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बन जाता है जो कमजोर मनोबल के इंसान को हानि पहुंचा सकता है,क्योंकि स्त्रियां अपेक्षाकृत पुरुषों के, ज्यादा भावुक होती हैं, इसलिए उन्हें श्मशान भूमि पर जाने से रोका जाता है। दाह संस्कार के बाद भी मृतआत्मा का सूक्ष्म शरीर कुछ समय तक वहां उपस्थित होता है, जो अपनी प्रकृति के अनुसार कोई हानिकारक प्रभाव भी डाल सकता है।

वैज्ञानिक कारण

शव का अंतिम संस्कार होने से पहले ही वातावरण सूक्ष्म और संक्रामक कीटाणुओं से ग्रसित हो जाता है। इसके अलावा मृत व्यक्ति भी किसी संक्रामक रोग से ग्रसित हो सकता है। इसलिए वहां पर उपस्थित इंसानों पर किसी संक्रामक रोग का असर होने की संभावना रहती है। जबकि नहा लेने से संक्रामक कीटाणु आदि पानी के साथ ही बह जाते हैं।

इन कारणों से हमें शव यात्रा के बाद जरूर नहाना चाहिए, इसके बाद ही फिर हमें कुछ कार्य आगे के करने चाहिए। दोस्तों यदि आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें।..

क्यों नहीं होता सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार ?

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गरुड़ पुराण के अनुसार सूर्यास्त के बाद संस्कार करना निषेध है और वहीं अगर किसी की मौत रात के समय हो तो उसका दाह संस्कार अगले दिन किया जाता है। इसके विषय में शास्त्रों में बताया गया है कि इस समय किया गया संस्कार मृतक की आत्मा को कष्ट भोगना पड़ता है और इसके साथ ही अगले जन्म में उसके किसी न किसी अंग में दोष हो सकता है। इसी वजह से अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद नहीं करना चाहिए।

आपने देखा होगा कि दाह संस्कार से पहले एक छेद वाले घड़े में जल भरकर शव के आस-पास परिक्रमा की जाती है और उसके बाद उस घड़े को पीछे को ओर जोर से पटकर फोड़ दिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसके पीछे का कारण पता है। अगर नहीं तो हम बताते हैं इसके बारे में। शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मृतक की आत्मा उसके शरीर से अपना मोह भंग कर लें। इसके पीछे एक ओर वजह भी है कि इंसान का जीवन घड़े की तरह मृत होता है और इसमें भरा पानी व्यक्ति का समय होता है। कहते हैं कि जब घड़े से पानी टपकता है तो इसका अर्थ ये होता है कि अंत समय में हर व्यक्ति को सब कुछ त्याग कर परमात्मा में प्रवेश करना ही पड़ता है।

हिन्दू धर्म में महिलाओं का श्मशान घाट जाना वर्जित क्यों है?

कहा जाता है कि बुरी प्रेत आत्माएं सबसे पहले औरतों को ही अपना निशाना बनाती हैं। खासकर भूत उन औरतों को अपना निशाना बनाते हैं जो वर्जिन होती हैं। इसलिए उन्हें शमशान घाट नहीं ले जाया जाता। सनातन धर्म के अनुसार हिसाब से जो अंतिम संस्कार करने जाता है, उसे बाल देना होता है। गंजापन औरतों या लड़कियों को नहीं सुहाता, इसलिए एक यह भी वजह है कि औरतों को अंतिम संस्कार में नहीं ले जाया जा सकता। माना जाता है कि शरीर को अंतिम संस्कार के बाद पूरे घर की सफाई जरुरी होती है। जिससे कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में ना रह सके। इसलिए घर की साफ-सफाई कामों के लिए रोका जाता है। अंतिम संस्कार के बाद पुरुषों को घर में प्रवेश स्नान के बाद ही होता है।

शास्त्रो के अनुसार श्मशान घाट पर मृत आत्माएं भटकती रहती है, ऐसे में ये आत्माएं लडकियों या महिलाओं के शरीर में प्रवेश होने की संभावनाएं रहती है। इसलिए महिलाओं को शमशान में जाने की पाबंदी होती है। हम कई बार देखते है कि लडकियां और औरतें दिल से काफी कमजोर होती है। ऐसे में वे किसी अपने की मृत्यु के बाद खुद का रोना रोक नहीं पाती। ऐसे में श्मशान घाट में औरत के रोने से मरे हुए व्यक्ति की आत्मा को शांति प्राप्त नहीं होती।  माना जाता है कि अपने को मरने के बाद शांति मिले इसलिए औरतों को अंतिम संस्कार में जाने की अनुमति नहीं होती। सनातन धर्म संस्कृति और मान्यता है। ऐसे में अगर आप सनातन धर्म को अपनाते है तो आपको उसके रीति रिवाज का भी हमेंशा ध्यान रखना चाहिए।

आचार्य मुरारी पांडेय जी

।।। जय सियाराम।।।

 

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